धागा है तो वस्त्र हैआटा है तो रोटी हैप्रेम है तो प्यार हैबीज है तो अंकुरित हैकारण है तो कार्य हैसंसार है तो परावर्तन हैकर्म है तो जन्म मरण हैधर्म है तो मोक्ष हैश्रद्धा है तो ईश्वर हैयही तो जिंदगी हैहा जारी रहेगा संसार भ्रमणअंकुर फूटेगा ही फूटेगा……………उत्पन्न होगा तभी बीजजब वह भुना नहीं है,निर्जीव नहीं हैबेजान नहीं है,अचेतन नहीं हैकुंठित नहीं हैखोखला नहीं हैअंकुर फूटेगा ही फूटेगा……………हा नहीं फुट सकता हैजो भुना गया है बीजअग्नि की ज्वाला मेंकर्म की लो मेंतपश्चरण धर्म क्रियाओ सेजन्म मरण को जला दियाकैसे फूटेगा का अंकुर…….अतएव नहीं फुट सकता !नहीं आना है संसार मेंनहीं चाहिए है नई पर्यायनहीं अनुभूति है सुख-दुःखनहीं चक्र है जन्म मरण कासरे बंधन को त्याग करहोना है मुक्त स्वयं को स्वयं सेइस मल रूपी कर्म सेप्राप्त करना है मोक्ष कोपुनः नहीं आ सकता संसार मेंनहीं फुट सकता हैयह अंकुरित बीज…………..यह अंकुरित बीज………….. नोट :- इस कविता में कोई कमी हो बताये जरूर……आपका सभी का धन्यवाद…
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Sumitji…..टंकण की गलितयों का आप ध्यान रखें….बहुत सुन्दर….
is bar bahut dhyan de ker likha tha,
टंकण ki गलितयों se ap ka matlab. technical problem se hai?????
kya ap thoda ispast karenge
sumit ji bhut gajab likha hai apne .apki kalpana tarif a kabil hai.
lovely thought …………………..!!