मैं पागल हो भया पढ़ पढ़ सारी रात….फिर उसपे लिखता रहा ज्यूं हुई प्रभात…पढ़-पढ़ लिख-लिख के ज्ञान भयो बहुतेरो…व्यर्थ भयो सब ही जो ना समझा प्रेम की बात..राधा कृष्ण के प्रेम पे लिख डाले गीत पचास….विरह – रास को लेके लिख दी अपनी भड़ास…पर थोड़ा सा भी होता पवित्र प्रेम आभास….निश्चय ही हो जाता दिल में राधा मोहन का वास….राधा मोहन के प्रेम को मैं ना समझा काहे…नासमझ तो समझ गया मैं उद्धव बन पछताए…सृष्टि के जो भेद हैं वो सब इसमें हैं समाये….जिसकी जैसी चाह उसके मन वैसा ही सब भाये….\/सी. एम्. शर्मा (बब्बू)
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Bahut sunder……………………………..Bilkul sahi kaha aapne………………
बहुत बहुत आभार………vijayji………
Bahut Sundar rachna Sharma ji. Sahi hai…Tulsidas ji bhi kah gaye hai “जाकी रही भावना जैसी | प्रभु मूरत देखी तिन तैसी |”
बहुत बहुत आभार…Anuji……
bhut hi gajab…………… khoob sir…….
बहुत बहुत आभार…Madhuji……
well…….निर्मल मन के बिना कुछ भी पाना असम्भव है इस सार को बड़ी सरलता से समझाने का प्रयास किया है आपने……….आपके गूढ़ भावो चिंतन काबिल-ऐ-तारिफ है……बहुत खूबसूरत बब्बू जी !!
कोशिश करता हूँ मैं जो मन में आता लिखने की…आपका मार्गदर्शन मिलता रहे और अपने में सुधार करता रहूँ…ऐसी इच्छा है बस….तहदिल आभार आपका……..
Bahut sundar. Dhaai aakhar prem kaa padhe so pandit hoy.
सही कहा आपने….बहुत बहुत आभार आपका……..
Sharma ji . बहुत सुन्दर ……, भक्ति और गहन चिन्तन.का सम्मिल्लित संगम…,
बहुत बहुत आभार आपका……..Meenaji…….
sari game hi man ki hai……sari command apne pass rakhta hai……saaf hone ka naam hi nahi leta………jisne man par kabo pa liya usne jug jit liya……..bahut sunder rachna………sir……
बहुत बहुत आभार आपका……..Maniji……..