दर्दे इश्क़ में यूं मेरे, जज़्बात हो पड़े….बेख्याल बेवजह, दिल है की रो पड़े….हर्फो हया से दोस्ती, महंगी पड़ी हमें…जज़्बा-ऐ-इश्क़ खुद के, हम कैद हो पड़े…इश्क़ जुनूँ में उड़ रहे थे, आसमान पे हम….ठोकर लगी जो वक़्त की, ज़मींदोज़ हो पड़े…इस रंज से विदा किया, तूने जहाँ से हमें….दुश्मन भी जिसको देख के, हो बेबस रो पड़े….इस कदर होगी हंसी, क्या मौत कभी ‘चन्दर’छूआ जो तूने ज़ख्मो को, लगा कँवल खिल हो पड़े…\/सी. एम्. शर्मा (बब्बू)…(पूर्व में प्रकाशित को सुधार करके आपकी नज़रे कर्म हेतु…..)
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aapka jwab nhi hai sir………
बहुत बहुत आभार आपका….मधुजी….
Bahut sunder………………
बहुत बहुत आभार आपका….Savitaji……
Bahut Sundar Sharma ji…..
बहुत बहुत आभार आपका….Anuji…..
wah sir kya likha hai aapne…….
बहुत बहुत आभार आपका….Maniji……
apne aap me paripurn rachna. .. . .
बहुत बहुत आभार आपका….Krishanji……
Wow ……बहुत उम्दा बब्बू जी उर्दू शब्दो का बेहतरीन प्रयोग जो रचना की खूबसूरती बढ़ा रहे है अब इतनी म्हणत की है आपने तो क्यों न इसे मुकम्मल बनाया जाये, ……… “बेबस हो रो पड़े”… की जगह “हो बेबस रो पड़े” फिट करके देखिएगा शायद शेर के भाव के अनुरूप ज्यादा उपयुक्त लगे….एक सुझाव और … अंतिम शेर को फिर से नजर करे आशय कुछ अस्पष्ट सा लगता है …….हो सकता है शायद मेरे समझने में कही चूक हुई हो !
Nivatiyaji….बिल्कुल सही कहा आपने…’हो’ पहले लगाने से तो ‘बेबसी’ को असली पहचान मिल गयी…मेरे दिमाग में ये बात आयी ही नहीं…यही सब तो सीख रहे आपसे….मैंने अंतिम शेर को भी यथासंभव बदलने का प्रयास किया है…नज़र करियेगा….तहदिल आभार आपका…आपके मार्गदर्शन का…..
Babbu ji I agree with Nivatiya ji. Your relook is required for improvisation……
Madhukarji…..तहदिल आभार आपका…मैंने यथासंभव बदलने का प्रयास किया है…नज़र करियेगा….
Bahut khoob……..,ati sundar……………,
तहदिल आभार आपका…Meenaji………
Kamaal hai……………….Ati sunder…………………..
तहदिल आभार आपका…Vijayji………