लगी शाम ढलनेशाम है सुहानीगूंज रही किलकारीआसियाने है खालीनिकल रहा वक्तपरिंदो के इंतजार सेहद है प्रतीक्षा की…….पूछा नहीं परिंदों से…….कोई तो पूछो उनसेकोई तो उन्हें कहोकोई तो दिखाओ रास्ताउनके आसियाने काकहीं तिमिर ना हो जायेकही भटक न जायेइन मेघो में……..पूछा नहीं परिंदों से….क्यों है बंजारो की तरहक्यों नापते है दूरियाइस नभ से उस नभ तकये समझते जहाँ इनकाये रहते है अपनी धुन मेंये है अपनी ही मस्ती मेंपूछा नहीं परिंदों से….ना है तालीम उड़ानों कीना है सीमा, ना है बंधनना पराया है कोईना घड़ी है करते कैसेना है जुगाड़ कल काना डर है वक्त काना है कोई मज़हब इनकापूछा नहीं परिंदों से….कैसे समझते उच्चै आसमानो कोकैस समझते रिश्तो कोकैसे रहते हिल-मिलकर करकैसे जानते हवओ के रुख कोकैसे करते अभिव्यक्त भाषा मेंकैसे जीते जग मेंकोई तो बता दो आसियान इनका…….कोई तो पूछो उन परिंदों से…………….
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Lovely poem……………….keep it up …!!
bahut acchi lovely poem
go ahed
bhut khoobsurat bhav…………
sir sab aap ka ashirwad hai……
thank you….
if i am write wrong stranger plz give me suggestion in my every poem.
bahut khoobsoorat…………
thanks
to all…………….