इन पैरों में ज़ंजीरें हैं रिश्ते नातों की भारीकह दो कैसे कर लूँ फ़िर मैं खोज तुम्हारीतेरा प्रेम सचिदानंद सागर हैं एक अनोखा बड़ी देर से समझ में आई हैं ये बात हमारीशिशिर मधुकर
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Bahut hi sunder………………………..
Dhanyavaad Vijay ……
Waahhhhhhh …kya khoob kaha ……!!
Dhanyavaad Nivatiya ji ………..
Bahut sundar……..हाँ मुझे यहाँ सचिदानंद का प्रयोग इस भाव में उपयुक्त नहीं लगा…
Thank you Babbu ji for your critical comment. Pl. Suggest a suitable replacement.
Madhukarji…….मुझे ‘सचिदानंद’ शब्द को उस भाव में प्रयोग करने का समझ नहीं आया था इस लिए लिखा मैंने क्यूंकि सचिदानंद जैसे आप भी जानते हैं ‘आनंदमय कोष’ की बात है…वो एक स्वरुप है भाव नहीं…इसीलिए हमेशा ही भगवान्/ईष्ट या गुरु के लिए प्रयोग किया जाता है… उस हिसाब से मुझे अपनी समझ से लगा वो लिखा….
‘बस तू ही तो सचिदानंद है इस चराचर में’
बड़ी देर से समझ में आई हैं ये बात हमारी
Aapkaa sujhaav uttam hai. Valise kahnaa main bhee yahi chaah raha tha.
Very nice ………,
Hearty thanks Meena ji……..