रात की सड़क के उस पार हर रोज़ सबेरेवो आंखे यू खोलती हैंकि एक नज़्म साँस भर रही हैं, औरएक खयाल को ज़िन्दगी मिल जाएमुझसे इशारों और आवाज़ों में बात करती है,उसके हलक से कभी कभी कोई शब्द भीगते हुए,होटों तक आ तो जाते हैमैं कुछ समझ नहीं पाता मगरउसे गोद में लिए फिरू तो लगता हैंकिसी ने चंदन घसकर माथे पे मल दी होआजकल घुटनों पे रेंगती फिरती हैं घर मेंकही कुछ सहारा मिल जाए अगर, फिरलड़खड़ाते पाव पे खुद को खड़ा देखकर मुस्कुरा देती हैंआज रात की सड़क वो पार करने को हैंये नज़्म अब आंख खोलेगी अपनी
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Bahut sunder……………………..
Thank you sir
Lovely creation ………भाव सम्प्रेषण बहुत अच्छा है ……….आपकी रचनात्मक्ता बेहद उम्दा है ………….रचना के अंत में कुछ अधूरापन सा लगा जिस कारण आशय स्पष्ट नही हो पा रहा है …..!!
Akhiri mein ye likha hai ki ye nazm mtlab meri beti apni nind puri karke rat ki sadak bas par karne ko hai
Matkab nind se jagne waki hai