एक रोज़, गुलाब की पंखुड़ी पे, मुझे वो बैठी मिल ही गयी,मुस्कुराती सी,झिलमिलाती सी, अपने ही अक्स में जगमगाती सी,उस पंखुडी पे,मुझे वो मिल ही गयी…कुछ सवाल थे मेरे मन में, जो उससे मैंने पूछ ही लिए-क्यों तुम इस गुलाबी अप्सरा के साथ रहती हो,उसके साथ ज़रा सा वक़्त बिताके,क्यों वापस लौट जाती हो…ये जानते हुये भी कि,वो सूर्य की गरमाहट, तुम्हें भस्म कर देगी,तो क्यों तुम हर रोज़, खुद को तकलीफ़ पहुँचा के,पंखुड़ी से मिलने आती हो… कितने ही असन्ख्य काँटों ने,तुम्हरे तन को छीला होगा,फ़िर भी तुम क्यों आ जाती हो… अपनी मोती जैसी चमक से,पंखुड़ी को भी रोशन कर देती हो,इतना उपकार, इतनी मुश्किलों से गुज़रके,क्यों कर देती हो तुम… मेरे इस प्रश्न पे,ज़रा सी भावुक होकर ,मगर ज़रा सम्भलकर, एक खनकती सी आवाज़ में, वो बोली-कैसे भूल जाऊं उसे,जो है मेरे दिल के इतने करीब, जिसकी छवि में, जिसकी खुशबू में, है मेरा अन्श ,कैसे ना मिलूँ उससे… जिसकी शोभा से मैं भी हो उठती हूँ सुसज्जित ,कैसे प्यार ना करूं उससे… कुछ क्षणों के लिये उससे,हर सवेरे,अपने सुख दुख साझा करके,हँसना और रोना चाहती हूँ…मगर ओह! कैसी विडम्बना है ये,सूर्य की वो कान्ति ,हमें फ़िर अलग कर ही देती है…दोस्ती निभाने के लिये भी,चन्द लम्हे ही तो होते हैं, चार मास बाद तो,वो लम्हे भी इन्तज़ार में बदल जाते हैं ,और हम फ़िर बिछड़ जाते हैं… बस इन्तज़ार करती हूं,उस शरद ऋतु का,जो हमें जोड़ कर रखे हुये है…तब तक मैं भी,किसी मखमली घने मेघ में, गुमनाम सी, निद्रा में रहती हूं, और पंखुड़ी भी,काँटों के बीच ,मुस्कुराने का ढोंग करती है…
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New here… Kindly give ur valuable reviews…
Beautifully written,..,…………
Meri bahut si rachnayen hain Jo apko pasand aayengi. Ek baar najar Karen.
Thank u….i will surely read your poems
Rituji……बेहद बेहद खूबसूरत मन के भावों को पिरोया है आपने शबनम के रूप में….मुझे 2 पंक्तियाँ बीच में अछि नहीं लगी …आप अन्यथा मई लें कृपया…मैं अपनी सींच से समझ के कह रहा “उसके साथ वक्त बिताके क्यूँ वापिस लौट जाती हो” जँची नहीं क्यूंकि आगे आप सूर्य की गर्मी से भस्म होने की बात कह रहीं हैं….विरोदभास सा लगता है….आगे लिखा है कैसे प्यार न करून उस से.. इसमें अंत पे उससे चुभता है क्यूंकि आगे की पंक्ति उसी को पूरा करती है तो उससे आता उसमें….उम्मीद है आप बुरा नहीं मानेंगी….यकीनन आपने बेहद ही खूबसूरत लिखा है……,अगर ये पहली रचना है तो लाजवाब है….बधाई आपको… लिखती रहिये बस……????
Ji dhanyawad… Kuch din pehle likhna shuru hi kiya hai… Isliye shayad…isi trh apne amoolya vichaar meri rachanaaon pe dete rhiyega… Taaki mai sudhaar kr sakun.
Lovely description of nature with a lot of human emotions.
Thank u so much….