यार फिर बैठा हूँ कुछ लिखने, पर गालों पे शबनम और आँखें नम हैं,
धुंधली हैं यादें धुंधला ज़माना, धुंधला है कागज़ धुंधली कलम है;
जहाँ तक देख सकती हैं आँखें , वहां तक हैं यादें – यादों का बस्ता,
छत है घर की ,कोई साथी खड़ा है, उस घर को जाता हुआ एक रस्ता,
शायद यही एक मंज़िल है मेरी, या शायद हिस्सा किसी ख्वाब का है,
शायद अँधेरा परछाईं का है, या शायद सवेरा किसी नूर का है,
शायद कोई गलती कर दी थी मैंने, जो मैं माफ़ी के काबिल नहीं था,
मुझे माफ़ करना ऐ मेरे साथी, उस भोलेपन से मैं बाकिफ़ नहीं था,
पर मैं आ रहा हूँ तुमको मनाने ,उस रस्ते पर फिर आ रहा हूँ,
शायद अभी तक बैठे हो छत पे, शायद मैं तुमको दिख पा रहा हूँ,
धुंधला है घर भी,धुंधली है छत भी, धुंधले हो तुम भी, धुंधले भी हम हैं;
धुंधली है मंज़िल,धुंधला है साथी ,धुंधला है रस्ता, धुंधले कदम हैं,
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Man bhaavon kee sundar abhivyakti
Bahut khoob…………..