अंगड़ाई लेकर ,
आरामदायी चादर संग
कुछ वक़्त सुकून से ,
सोना चाहती हूं
तंग भरी गलियों से निकलकर,
वीराने जंगलों से कुछ कहना चाहती हूं
कोरे कागज़ पर शब्द याद आते नहीं,
लिखे शब्दों को,
दोबारा लिखना चाहती हूं
बड़ी हो रही हूं…….
जिम्म्मेदारी ढोने से पहले,
एक बार हठ करना चाहती हूं.
बच्ची थी…..फिर बच्ची बनना चाहती हूं
दुनियां की लापरवाही में,
अपनों की परवाह करना चाहती हूं
ना जाने कब यह ज़िन्दगी अलविदा कह दे
खुद से ज्यादा , एक बार किसी पे विश्वास करना चाहती हूं
इस ज़िन्दगी के संघर्ष कई हैं…
इनसे लड़कर थकने से पहले,
बस, कुछ देर सुकून से सोना चाहती हूं….
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bahut sunder rachna apki………………………..
Bahut khub………………..
Superb ………….nice poetry with suitable word.
Waahhhhhh…….हर शब्द बोल रहा है अपनी कहानी कह रहा है…….बेहतरीन……..
Ati sundar bhaav ……………
Very good, अति सूंदर …………………………..
एक बार “डिजिटल भिखारी…” पढ़ें और अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया दें.
sir,
mai aapki rachna jarur padhungi.
Namaste,
aap sabhi ko dhanyawaaad.