माँ माँ माँ मेरी माँ,बता तू है कहाँ,,आयी नहीं, तू मुड़ कर,बस गयी तू जाने कहाँ,,,,मैं ढूंढू हूँ तुझ को,कभी यहाँ, कभी वहाँ,,,, माँ माँ माँ मेरी माँ,बता तू है कहाँ,,मेरी इक आवाज़ पर, दौड़ आने वाली मेरी माँ,,,,देती नहीं आवाज़,छिप गयी तू जाने कहाँ,,,,, माँ माँ माँ मेरी माँ,बता तू है कहाँ,,,,आँचल में अपने, फिर से सुला ले तू,,,,गर तुझे नहीं आना, फिर अपने पास बुला तू,माँ माँ माँ मेरी माँ,बता तू है कहाँ,,कोई कहे, तू खुदा के घर गयी,,,,कोई कहे , तू तारा बन गयी,,,,माँ माँ माँ मेरी माँ,बता तू है कहाँ,,दुआओ छोड़ गयी, तू अपनी मेरे लिए,,,,पर माँ, मेरी माँ मैं रोयूं तुझे पाने के लिए,,,,माँ माँ माँ मेरी माँ,बता तू है कहाँ,,मनिंदर सिंह “मनी”
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Mani ji ,बेहद मार्मिक रचना…….,
tahe dil abhar meena ji………………..
Dil chu gayi sar…..
dhanywad vivek ji apka………………….
Superb………..माँ को समर्पित पवित्र ह्रदय से निकले यथार्थ भाव बेहद उम्दा मनी…!!
thank you so much nivaatiya sir………………..
Maniji……दिल से निकली भावनाएं ……..रूह में उत्तर गयी…. शब्दों में बस इतना कहूंगा कि आपको आपकी माँ यहाँ भी हैं उनका आशीर्वाद मिले…. आपका नाम हर और रोशन हो… जय हो…..
bahut bahut dhanwad apke inn shabdo ke liye………………..
Achcha geet Mani …..
thank you so much shishir ji……………….
Mani ji, Bahut sunder rachna……
tahe dil abhar anu ji apka……………..
Ati sunder mani ji………………………….
dhanywad vijay ji apka……………
ma ko samrpit sundar kvita….
dhanywad madhu ji……………..