कुछ हैं मेरे रसिक मीतकुछ जिन्हें भाता संगीतकुछ अन्याय से होते विभीतस्वभाव से कुछ हैं विनीत| देख ललनाओं का सौम्य श्रृंगार मिलता!सुकून इन्हें शांति और प्यार नवयौवना ब्याही जो आती रसिक मित्रों को सीधी भाती |संगीत के झंकार मेंहर बहती बयार मेंइस अनोखी संसार मेंदिखते सदा ये प्यार में| बहारों के सपनों में खोते हैं औरों की तरह कहाँ रोते हैं? ये प्रायः बीमार होते हैं ; जब इनके आँखें चार होते हैं |दे रहे निज लाली को मधुर मन्त्रकुछ मित्र लिये दूरभाष यंत्र खत्म नहीं होती बातें बीत जाती सारी रातें !!!और भी भरी कहानी हैरसद यौवन मस्तानी हैआँखों में जिनकी पानी हैदुनिया ये देख दीवानी है | बड़े विचित्र इनके नाते सुखद् चैन कहाँ पाते |———————————-© कवि आलोक पान्डेय ———————————–
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Hahahaha…..bahut khoob……
Mhhhhhnh……..
Claaaas….
Very Nice…………………!!
Bahut sunder…………………………..
ek baar “डिजिटल भिखारी…” padhen aur apani bahumulya pratikriya den.