“आज पिता बनकर ये एहसास हुआ ये जाना है,आज पिता को हमने क्या समझा है क्या माना हैकितना सताया पापा को बचपन में एक खिलोने को,आज उनकी विवशता को नजदीक से पहचाना है”आज पिता बनकर ये ……..”पास में ना था पैसा ओर हम ज़िद पे ज़िद करते रहते थे,वो पिता थे जो फिर भी एक बार ना कुछ भी कहते थेदिन भर मेहनत कर कर के जो कुछ भी कमाया जाता था,शाम ढ़ले वो ज़िसकी ज़िद थी खिलोना घर आता था”बच्चो की खुशियों की खातिर हँस हँस के कष्ट उठाना हैआज पिता बनकर ये ………”आज यही कहना चाहूँ पिता से दुनिया सारी है,अब तक किया सबकुछ उन्होने अब हमारी बारी हैएक पिता का इससे ज्यादा क्या कभी भी मन चाहे,बस उसका बेटा उसके बुढ़ापे का सहारा बन जाये”उनका हर सपना अब हमको पूरा कर दिखलाना हैआज पिता बनकर ये ………. (विवेक बिजनोरी)
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Bahut khub sir….
Sabhi ki soch aisi hi honi chahiye…
Varna aaj vruddhashram vaisebhi badh rahe hai…..
Bahut Bahut aabhar…………
Very touching and true……..
lovely creation ………….अनुभव सबसे बड़ा शिक्षक होता है !!
Bahut Bahut aabhar aapka ……sahi kaha bilkul….
bhut sundar rachana. sachi bat hai
Dhanyawad mam….
very nice sir…………………
Thanks sir…
Behad sundar……
so …nice……. so well….
Bahut sunder…………………………..
ek baar “ये सफर रेल का…” padhen aur apani bahumulya pratikriya den.