कहते कहते रुक जाता हूँ तुमसे दिल की बात,दिल के भीतर रह जाती है मेरे दिल की बात.मेरे दिल की बात जो समझे मेरे बिना कहे ही,ऐसे तो बस हो सकते हैं कुछ मेरे अपने ही.अपनों के बारे में मैंने गौर किया जब काफ़ी,नाम एक ही आया लब पर खो गए रिश्ते बाक़ी.नाम नहीं इक रिश्ता है ये जिया है जो बचपन से,एक अनोखा रिश्ता है ये जादू है कुछ इसमें.चोट कहीं भी लगती मुझको दर्द उसे भी होता,उसका मैला आँचल मुझको कितनी राहत देता.हर पल उसके आस-पास ही रहने का मन करता,नज़रों से ओझल हो जाती तो कुछ अच्छा न लगता.पापा दादा की मार से मुझको वही बचाती आई,दुनिया की हर बुरी बला से वही बचाती आई.दुनिया का तो हाल न पूछो मंदिर मस्जिद के रहते,जन्नत है ये घर मेरा तो बस उसके ही रहते.मेरे लिए वही है सबकुछ ‘रब’ बोलो या ‘अल्लाह’,बिना कहे जो समझे दिल मेरा वो है बस मेरी ‘माँ’.— अमिताभ आलेख
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class…. bahut hi khubsurat rachna hai sir…
ma ko samrpit sundar rachna
Amitabh, Lovely words……….
Bahut sunder rachna……
alekhji….लाजवाब….प्यार भरे माँ को समर्पित…..
bahut sunder lafz…………….ma ke parti..bahut badhiya amitab ji…………
It was great after a long time had to read your creation,…. Very Nice AMIT JI. !!