मन गोरी का महकता, कमर मटकत नाहीं….राख गगरी सर उसने, कमर लियो मटकाए….कमर लियो मटकाए, सब ससुरा पागल भयो…होश बिसरि देखि जो, घरवाली ने धर लियो….कह ‘चन्दर’ कविराय, जो किया है वो भुगतो…चाहे घर सुख चैन, न भटका तू बाहर मन…\/सी.एम्. शर्मा (बब्बू)
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Wah kya baat hai……………..ati sunder………………………
बहुत बहुत आभार…..vijayji……..
hahahahah……………खूबसूरत मनो विनोद ………………!!
बहुत बहुत आभार आपका…..निवतियांजी…
Babbu ji last line me koi shabd missing hi………otherwise bahut khoob.
बहुत बहुत आभार आपका….मधुकरजी….आप सुझाव दीजिये…मेरे दिमाग में नहीं आ रहा…जो आ रहा उस से मात्रा भार रचना का नहीं पूरा होता…