आशा…..ज़िन्दगी में कितनी ज़रूरी है…प्राण हैं ये….बिना इसके जीवन निरर्थक सा है…मृत्यूतुल्य……जैसे कुछ है ही नहीं सब कुछ होते हुए भी….बीमार शरीर तो अच्छा हो सकता है…पर मन…जो आशा ही छोड़ दे…उसके लिए जीना मरने जैसा….सब जानते हैं कि हर इच्छा पूरी नहीं होती…फिर भी परेशान….कुछ मौत का आलिंगन करते हैं…बिना सोचे कि ज़िंदगी तो यही रहनी है…कभी सुख…तो कभी दुःख और फिर…किसने जाना कि दोबारा ऐसी ज़िन्दगी नहीं मिलेगी…तो अभी की ज़िन्दगी जीने की जगह…उसका अंत क्यूँ….सिर्फ भावावेश में….नहीं देखते की द्वन्द में भी आशा जीवित है…दरअसल मरती है ही नहीं आशा…बस हम देख नहीं पाते…पहचान नहीं पाते…शायद ऐसा हो….इसी द्वन्द में वो जीवित है…पर हम आशा को बल ना देकर…अपनी कुंठाओं को बल दे रहे हैं…अपने आप को न पहचान कर…सिर्फ और सिर्फ दोष देने..लेने पे लगे हैं…आशा भीतर ही भीतर दब के रह गयी है…उसकी आवाज़ महीन सी आ तो रही पर…हम ही नहीं सुन रहे हैं…\/सी.एम्. शर्मा (बब्बू)
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Manav man ka sundar vishleshan………, Bahut khub……..,Sharma ji.
Meenaji…..बहुत बहुत आभार आपका…..
Bahut achhi rachna Sharmaji…kash log depression se jo gujar rahe unke haal ko samajh pate…bahut muskil daur hota …
Anuji…..आप का तहदिल आभार….मैंने ज़िन्दगी में ऐसा बहुत कुछ देखा है…अब भी मेरे सामने कुछ है ऐसा ……और कुछ दिन पहले यहाँ एक रचना पढ़ी थी…यह सब की मनःसिथति वश लिखा है… हालांकि मेरे जैसे इंसान की बस की बात नहीं है ऐसा लिखना या शब्दों को सही अर्थों में प्रयोग करना…मेरी कोशिश शब्दों को नियंत्रण में रखने की ज्यादा है ताकि कोई भी जो इस मनःसिथति से गुज़र रहा उसको अपने पे कटाक्ष या मजाक न लगे…जिसका असर बुरा हो… मेरी हार्दिक इच्छा है… भगवान् सब के मन की चिंताओं को विश्राम दे…
anuji….और जोड़ना चाहूंगा…आपने बहुत अच्छा लिखा की हम उन सब की मनोदशा को समझ सकते जो डिप्रेशन के दौर से गुजर रहे…आप बिलकुल सही कहती हैं…हम पे दायित्व ज्यादा है… उनको समझ कर प्यार संभालना…पर अक्सर ऐसा नहीं देखा मैंने…बहुत ही कम लोग हैं जो सही माने में अपना दायित्व निभाते हैं….
Sharmaji…it’s well written poem and very nice poem. Maine Ise depression ke saath jod kar dekha, kyo ki last para me mujhe last two lines me ek umeed si nahar aayi… “asha ki awaaj mahin si aato rahi hai, hum hi nahi sun paye”….isko maine kash log sun pate aur madad kar pate, is tarah read karna chaha……mafi chahti hu …ise anathya na le….waise meri Hindi bahut poor hai…..Maine mere hisaab se last two lines ka matlab nikal liya….
अनुजी…आप माफ़ी मांग के शर्मिंदा मत करिये…मैंने आपके विचारों को सही ढंग से ही लिया…और मैंने जो आपने बोला परसिथ्यों का उन सब को सोच कर ही लिखी है ये रचना…इस लिए आप ने सही समझा है…और मैं आप के विचारों से शत प्रतिशत सहमत हूँ….
Comment-> जीवन का ही दूसरा नाम है आशा. बेहद खूबसूरत ……………………….
बहुत बहुत आभार विजयजी………..
Lovely…….आशा शब्द की विस्तृत व्याख्या खूबसूरत भाव सम्प्रेषण के साथ …ये आप जैसे गुनी जन ही कर सकते है बहुत उम्दा !!
बहुत बहुत आभार आपका…इस सराहना के लिए…आप ही जिम्मेवार हैं निवतियां जी…जो आज सराहना मुझे मिली…हा हा हा हा……….
Behad sundar ………….
बहुत बहुत आभार……मधुकरजी………