तन्हा बैठा हूँ ख्वाबों में अब तुम भी चले आओअपने पैरों की आहट से तार मन के खनकाओतुम आते हो मेरा चेहरा खुशियों से दमकता हैं अँधेरों को मिटाने वाली वही तुम रोशनी लाओ तेरी खातिर ही तो मैंने सभी बंधन को तोड़ा थासब डर छोड़ अब मुझको तुम भी तो अपनाओधरा पर झुकती हैं शाखें ज्यों ही बौछार पड़ती हैं स्नेह बारिश की मानिंद तुम मुझ पर बरस जाओ मेरी जान जान लो मधुकर तुम्हारे बिन अधूरा है मिला के अपनी सांसो में मुझे सम्पूर्ण कर जाओ शिशिर मधुकर
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waahhhhh……बहुत ही उम्दा….लाजवाब नज़्म है….पर सिर्फ अंतिम पंक्ति में मिटा के सम्पूर्ण होना अखरा…मेरी समझ में सम्पूर्ण होने में समर्पण का भाव आता है जो हमारी संस्कृति से निकला है…
Hearty thanks Babbu ji. I have made a suitable change. Hope you like it now.
Bahut badhiya sir…….
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khubsurat gajal………………….लाजवाब ……………………..
Hearty thanks Vijay for your comments.
lovely creation ……….with beautiful flow……… Shishir ji……………., i agree with Babbu ji. .
Thank you Nivatiya ji. Hope you will like the change.
Very nice………..
Thank you Anu ……..
Very nice………, beautiful creation Shishir ji.
Meena ji , I appreciate your words.