अपने प्यार में तुमने साजन मुझको ऐसे बाँधा है,झरते हैं भाव हृदय से तेरेशब्दों में मैंने बाँधा है,,,,,जब भी दर्पण की ओर निहारूँ प्रेम से तेरे रूप सँवारूनयनों में छवि दिखती तेरी साँसों से तेरा नाम पुकारूँ तेरे प्रेम में मैंने साजन खुद को ऐसे साधा है झरते हैं भाव हृदय से तेरेशब्दों में मैंने बाँधा है,,,,,प्रेम हमारा ऐसा साजनरस्म-रिवाज़ का न कोई बंधनएक-दूजे के अप्रतिम प्रेम मेंभीग रहें हैं अपने तन-मन साजन तुम हो कृष्ण मेरे रोम -रोम मेरा राधा है झरते हैं भाव हृदय से तेरेशब्दों में मैंने बाँधा है,,,,,तेरी साँसें हैं मेरी धड़कन बना है तेरा मंदिर ये मनप्रेम में खुद को किया समर्पित एक-दूजे का बनकर “साजन “सम्पूर्ण हुए हम दोनों प्रीतमना हममेँ कोई अब आधा है झरते हैं भाव हृदय से तेरेशब्दों में मैंने बाँधा है,,,,,अपने प्यार में तुमने साजनमुझको ऐसे बाँधा है ,झरते हैं भाव हृदय से तेरेशब्दों में मैंने बाँधा है,,,,,!!!!सीमा ” अपराजिता “
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nice………खूबसूरत प्रेम अभिव्यक्ति ……………..अति सुन्दर सीमा जी !!
seemaji……बहुत ही सुन्दर भाव हैं आपके….आपसे अनुरोध हो एक बार फिर से आप अपनी रचना को देखिये…”पतित प्रेम” और कुछ लफ़्ज़ों को….
bahut sunder bhav…………………….
Behtreen prem abhivyakti. Atyant khoobsoorat. Marvelous.
आभार आपका शिशिर जी ,,,,
sundar srinsringarik rachana seemaji
Dhanywad madhu ji
Lovely write…………………………………………
एक बार “धुंध अब छंटने लगी, अरुणोदय होने लगा …” पढ़ें और अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया दें.