हुआ करता था पहलेमिट्टी छप्पर का घरठंडा सुकुन भरावहाँ आती थी गौरैया अनगिनतचींचीं-चूचू का गीतसुना करते थे दिनभरघर में अकेले रहने पर भीन होता था भासअकेलेपन का घोंसले से झाकते नन्हेदाना लाते मुँह भर भर करडालते उनके चोंच में मात पितावात्सल्य का अनुठा दृश्य अब दुर्लभ हो गया है लगता था यह चिर संगिनी हैजो हमसे कभी विलग न होगीअब ईंट कंकृट पत्थर से बने घर सर्व सुविधा युक्त परिंदा भी पर न मार सके चाकचौबंद मकानेंगिने चुने लोग उस घर मेंनियति से कोसों दूरशीतलता उष्णता सबकृत्रिम औऱ बनावटीजहाँ ईंट पत्थर से लोगवैसे ही रिश्ते ,मशीन से चलतेकिसी को किसी के लिए फुर्सत नहींयहां गौरैया के लिए जगह कहांउनका जीवन कठिन हो गया हैसर्घष से पूर्ण दाना पानी जुटाने करना पडता है मसक्कतइसलिए वो हमसे दूर हो गईइतना कि उसे गिन सकेआओ उनकी ओर कदम बढायेउनको उनका हक दिलाएं अपनी चिर संगिनी को वापस लाए रूठी गौरेया को मनाए
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Bahut sunder rachna……..
bhut bhut dhnywad mam
Ati Uttam……………
bhut bhut dhnywad sir
Madhuri……..लाजवाब……..मनमोहक…..सच में ये सब सपना सा होने लग गया अब……..
Sorry madhuji लिखा था मैंने मोबाइल ने नाम कुछ और कर दीया……. क्षमा प्रार्थी हूँ आपसे…..
koi bat nhi sir.smash me aa gya that.srahna hetu sukriya.
Nice poem …..मधु जी ……. वास्तिवकता से परिचय कराती खुबसूरत रचनात्मकता ।
thank you sir.bhut bhut dhnywad.
Bahut hi sunder aur bhaawpurn kavita hai aapki Madhu ji aapki.
bhut bhut dhnywad mam
saty se rubaru karwati aaj ke samy ko…..bahut sunder………………….
bhut bhut dhnywad sir
Bahut sunder ……………………………..……..