काश ज़िन्दगी भी एक स्लेट होती
जब चाह्ता लिखा हुआ पोछ्ता
और नया लिख लेता
चलो ज़िन्दगी ना सही
मन ही सेलेट होता
पोछ सकता , मिटा सकता
उन जज्बातो कोजो पुराने हो गये हें
पर ज़िन्दगी की चाक तो
भगवान के पास है
और मन पर पणी लकीरं हों
या सेलेट पर पणी खुंरसटे हों
धोने या पोछने से
नहीं हट्ती नहीं मिटती
पूरानी पर गयी
सेलेट को बदलना पड़ता है
विवश मन को भुलाना होता है…
कपिल जैन
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bhut achhi rachana
bhut achhi rachanahai
Nice write………..
kapil ji….बेहद ही खूबसूरत अंदाज़ से आपने भावों का चित्रण किया है….
Bahut achhi rachna…….
lovely ………….भावनाओ का अच्छा चित्रण……….!!