देवमानव – 1क्यों नहीं सारी स्त्रियां डूब कर मर जातीं पानी मेंक्यों नहीं सारे भूखे नंगे किसान मज़दूर मिलकर आत्मदाह कर लेतेक्यों नहीं ज़हर खाकर मर जाते सारे दलित पिछड़ेक्यों सब शौकीन हैं छिछड़ी व्यवस्थाओं में पिस घिस कर अपनी पिलपिली जीवन लीला की राम लीला खेलने केक्यों आनंद ले रहे हैं अपने शोषण का सब दबे कुचले कमज़ोर प्राणीक्यों समझौतों के जंगल में अपनी तुच्छ ज़रूरतों की प्यास के नशेड़ी अपना डेरा तम्बू तान कर मैला कुचैला करते फिर रहे हैं निर्मल आलीशान संसार कोक्यों इन्तज़ार में हैं ये सब कि कोई देवमानव आकर करेगा बलात्कारदेह का, इच्छाओं का, जीवन काघोंटेंगा गला, रेतेगा सर या गैस चैंबर में सुख शान्ति की नींद सुलायेगाहाथ पैर टूट गये हैं क्या सबके जो डूब कर मर नहीं सकतेमाचिस और घासलेट खरीद नहीं सकते तो चुरा ही लोऔर ज़हर नहीं मिल रहा तो फावड़े से एक दूसरे का सर ही फोड़ लोसमझो, जानो और जान लोतुम सब की सामूहिक मृत्यु ही चाबी है तुम्हारी सुख शान्ति कीदेवमानव उसी दिन मरेगा जिसदिन तुम सब ।
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Very pain filled write.. Please also read one of my poems “hraday kee kuntha ” on a similar issue and respond.
Thank you so much. Please post the link to your poetry.
Neeraji…..बेहद मार्मिक है आपकी व्यथा…..आपके शब्द उद्वेलित करते हैं….हर किसी के “जीवन” में “जीवन” इस लिए नहीं की वो सुखी है या दुखी है…वो कितना भी विवश क्यूँ न हो प्रस्थितियों से…उसमें आशा जो है वो जीवन संचार करती है….आशा हम में कहीं कोई पैदा नहीं करता ये जन्म से हमारे में निहित है आत्मा में… जैसे आत्मा नहीं मरती वैसे ही ये भी नहीं…. फिर सवाल ये पैदा होता की इंसान आत्म हत्या क्यूँ करता….हाँ परसिथ्यों के वश लोग आत्महत्या भी करते हैं…वो भावुकता होती है… आत्मा जैसे स्थिर है वैसे ही आशा भी है…हम आत्मा को नहीं पहचानते तो आशा कैसे जानेंगे…
Neeraji aapki Kavita vyatha dikhti hai….mai life ko positive way me leti hu. Sharmaji ne jo likha hai mai usse bhi sahmat hu…..
Beautiful analyesis………..असंतोष और मानसिक पीड़ा से दुखित ह्रदय में आक्रोश की उपज स्वाभाविक है ……….आपका चिंतन जायज़ है मगर .किसी भी समस्या का समाधान उससे स्वयं की मुक्ति नही है …..सदियो से चलती दांस्ता का अंत इतना आसान नही होता……इस परिपेक्ष्य में चंद पंक्ति नजर करता हूँ
कर खुद को दफ़न फूलो की सेज सजाई जाती है
इतनी आसानी कब मंजिल ऐ राह बनाई जाती है
पीढ़िया गुजर जाती घने काले अंधेरो के साये में
तब जाकर कोई उजाले की किरण नजर आती है !!
विश्वाश के साथ आगे बढिये…कलम का जोहर दिखाते रहिये………अति सुन्दर !!
mere vichar me bhi aasha ki Kiran insan ke liye jruri hai . achhi rachna.