” खुद पे ख़ुदा की आज भी मेहरबानी याद है,कच्चे-मकान, चूल्हे की रोटी, बारिश का पानी याद है”माँ का अपने हाथों से रोटी खिलाना भूख में,पापा की वो सारी परियों की कहानी याद है” खुद पे ख़ुदा की आज भी मेहरबानी याद है,कच्चे-मकान, चूल्हे की रोटी, बारिश का पानी याद है”भूल कैसे सकता हूँ “बचपन” की यादों को भला,हर नींद मेरी मुझको माँ के आँचल में आनी याद है” खुद पे ख़ुदा की आज भी मेहरबानी याद है,कच्चे-मकान, चूल्हे की रोटी, बारिश का पानी याद है”अब देखता हूँ अपने पास सब ऐशो-आराम हैं,रात को रौशनी के लिए वो डिबिया जलानी याद है” खुद पे ख़ुदा की आज भी मेहरबानी याद है,कच्चे-मकान, चूल्हे की रोटी, बारिश का पानी याद है”दिन थे सबसे अच्छे वो जो खो गए जाने कहाँ,तख्ती, कलम, स्याही सभी बात पुरानी याद है” खुद पे ख़ुदा की आज भी मेहरबानी याद है,कच्चे-मकान, चूल्हे की रोटी, बारिश का पानी याद है”विवेक कुमार शर्मा
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Lovely …….बहुत खूबसूरत विवेक ………..अस्सी के दशक की याद ताज़ा करा दी आपने !!
I agree with the comments of Nivatiya ji. But it relates to seventees .
bahut sundar…….kahan gaye woh din….
kavy pdhkr vakai bchpan yad aa gya