गर मुझको दुनिया में लातीमाई तेरा घर भी पीहर होता तेरे घर को मै सदा सजाती तेरा आँगन भी चमक न खोताराखी का दिन उत्सव होताभाई न खोजा करता बहनाकभी किसी का दिल न दुखाती माना करती सबका कहना घर में सदा खुशहाली रहती किसी का दिल कभी न रोता गर मुझको…. हरदम मैं ये कोशिश करती घर में हो खुशियों की लड़ी पर सब के संग सदा ही रहती जब हो जाती दुःख की घड़ीअलग न करती कोख से मुझको तेरा मन भी कोई बोझ न ढोता गर मुझको…..भैया बसे परदेश ओ बाबुल कौन तेरे नैनों को पोंछे किसे सुनाये मैय्या दुखड़ारुकते नहीं है आंसू रोके मैय्या न रोती मैं रहती तो बाबुल ऐसे दुखी न होता गर मुझको….
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Lovely creation …………………………..
bhut bhut dhnywad sir
Nice poem……….
thank you mam sukriya
Beautifully written………….
thank you sir.bhut bhut aabhar
bahut uttam bhav……………………
bhut bhut dhnywad sir
Bahut khubsurat rachna
Ek base “mujhe mat Mario (beti) padhen
bhut bhut dhnyawad vijay ji………..
Bahut hi khoobsoorat…..मर्मस्पर्शी……मधुजी….आप औरों की रचनाओं पे भी अपनी प्रतिकिर्या दें तो अच्छा लगेगा….
ha sir pdhti ja rhi hu aur prtikriyaye de rhi hu kuch ko hi pdh pai hu adhyayn jari hai
aapki slah aur comments ke liy hirdy se aabhar tatha sukriya sir