मुझे स्वर्ग सा महसूस होता है ,आपकी यादों में डूबता हूँ जब भी।मेरा दिल वाग वाग करता है ,आपके मन को स्पर्श करता हूँ जब भी।ये नयन कितना व्याकुल होता है,आपके तन का दर्श करता हूँ जब भी।ये मेरा शरीर कितना बेफिक्र सोता है ,सिर आपके घुटनो पर रखता हूँ जब भी।देखो कितना मुझे फक्रा होता है ,आपके कन्धों पे हाथ रख कर चलता हूँ जब भी। .देखो हृदय कितना शांत होता है ,शाम तले आपकी वाहों में ढलता हूँ जब भी।कैसे विरह की देखो सुलह होती है ,आपके हाथों में हाथ हमारा मिलता है जब भी।नया सा हर रोज जीवन पाता हूँ तुम संग ,आपका चहरा मुस्कराहट से खिलता है जब भी।चाहत की रातों में डूब जाता हूँ कितना ,मेरे चहरे पर आपके केशुओ से आढ़ होता है जब भी।
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बहुत खूब……………..
मेरी रचनाएँ “धुंध अब छंटने लगी, अरुणोदय होने लगा …” और “आज के ज्ञान का मंदिर…” पढ़ें और अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया दें.
sukriya ji jarur padege
प्रेम में अभिभूत अहसास की सुखद अनुभूति का अच्छा चित्रण ………..!!
ji bahut bahut sukriya
bahut acche sir………………….
sukriya mani
क्यूँ न हो……बहुत बढ़िया……
bahut bahut dhanyabaad
दिल को छु गई आपकी रचना
dhanyabaad