*हम एक ही दरिया के दो किनारे हैं:अनन्य*
*”यक़ीनन कट गयी तुझ बिन ये ज़िन्दगी की सज़ा,*
*मगर मत पूछ कि दिन किस तरह गुज़ारे हैं,*
*मुद्दत से सामने हैं फ़िर भी मिल नहीं सकते,*
*हम एक ही दरिया के दो किनारे हैं I*
*हमारा हाथ थामकर कई मौजें निकलती हैं,*
*बहुत सी कश्तियों का अपने ऊपर भार होता है,*
*हमारी पीठ पर उगती हैं रिश्तों की नयी फसलें,*
*कई सपनों का ढ़ाँचा आंख में तैयार होता है,*
*तेरा मंज़र भी दिलकश है, मेरे अपने नज़ारे हैं,*
*मगर हम सामने होकर भी मिल नहीं सकते,*
*हम एक ही दरिया के दो किनारे हैं l*
*हमारे दरमियां सच है कई मौजों का शोर है,*
*मगर इस शोर में बाकी हैं कितने सन्नाटे,*
*कई मौजें दिखाती हैं कि समतल हो गये हम तुम,*
*मगर जो बीच में खाई है उसको कौन पाटे,*
*मकां के खंडहर से आज भी चेहरे हमारे हैं,*
*मगर हम सामने होकर भी मिल नहीं सकते,*
*हम एक ही दरिया के दो किनारे हैं l*
*तू है जिसे हर हाल में आवाज दी मैने,*
*कई बार तो तूने भी सदा दी ही होगी,*
*मगर इन ख्वाहिशों के शोर में अल्फाज़ दब गये होंगे,*
*मेरे एहसास की कश्ती वहीं दबी होगी,*
*बची थी आस जो भी वो भी किस्मत के सहारे है,*
*मगर हम सामने होकर भी मिल नहीं सकते,*
*हम एक ही दरिया के दो किनारे हैं I*
*मंजिल है तेरी भी उसी सागर की बाहें,*
*जिसका सफ़र मेरी तलाश का भी सिलसिला है,*
*हम एक ही मंज़िल के हमसफ़र हैं लेकिन,*
*हमारे दरमियां नज़दीकियों का फासला है,*
*अभी भी ख्वाहिशें हैं कुछ अभी भी कुछ सितारे हैं,*
*मगर हम सामने होकर भी मिल नहीं सकते,*
*हम एक ही दरिया के दो किनारे हैं l*
*All rights reserved.*
*-Er. Anand Sagar Pandey (अनन्य)*
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Marvelous……………………
बहुत सुंदर भावात्मक कविता है विक्की जी
कमाल की लय…ताल है आपकी कलम की….लाजवाब……….
बेहतरीन………………….
*हम एक ही मंज़िल के हमसफ़र हैं लेकिन,*
*हमारे दरमियां नज़दीकियों का फासला है,*
WELL SAID ………………..!!