किया जिसने मुझे रुसवा वो अब आँसू बहाते हैं मुझे सारे सितम उसके पर हर क्षण याद आते हैंये मेरा प्यार था जो मैं तेरी खामी को छुपाता था वरना तेरी रुसवाई करना मुझको भी आता थामगर सीमाएँ तूने लांघ दीं और विश्वास भी तोड़ा मुझे बदनाम कर दुनियाँ में कहीँ का नहीँ छोड़ा तुम ही कहो अब कैसे मैं तुम पर प्यार बरसाऊजब धड़कने मिलती नहीँ क्यों कर पास में आऊंशिशिर मधुकर
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अति सुंदर ………बिलकुल सही कहा आपने ….कोई हक़ नही बनता नजदीकियां बनाने का जब ह्रदय के तार मिलते नही !!
So nice of you Nivatiya ji for lovely comment
Very nice Shishir ji…..
Hearty thanks Anu ……
Beautifully written……..,
So nice of you Meena ji ………….
Very nice Shishi ji
So nice of Kiran ji for reading
बहुत खूबसूरत……..
Hearty thanks Babbu ji …….
बहुत ही सुंदर………………….
Hearty thanks Vijay for your admiration.