दिल जख्मों का है ठिकाना प्यार तो है बस एक बहाना तूफां दिल मे कब आ जाएकब मिल जाये ग़म का नज़राना।दिल जख्मों का है ठिकाना । उपर फूलो की सेज सजीनीचे काँटों का बिस्तर है धूप मे ग़म की जलता हुआ इक खमोशी का मंजर है नफ़रत के जहाँ के लोगों की फितरत की क्या हम बात करें एक हाथ में जिनके मरहम और दूजे मे चमकता ख़ंज़र है ।घायल दिल का ये अफसाना दिल जख्मों का है ठिकाना ।दोष नहीं तक़दीरों का ये इश्क कयामत है ऐसीमहफिल की खुशी बे-मतलब है तन्हाई की आदत है ऐसीवो दामन काँटों से भर दे या खुशियों की तस्वीर जलाये फर्क नहीं पड़ता कोई रुसवाई की आदत है ऐसीबदनामी का सबब पुराना ।दिल जख्मों का है ठिकाना। …देवेंद्र प्रताप वर्मा”विनीत”
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बहुत खूब….अलग सा……….
very nice sir…………………..
बेहतरीन रचना……………………………….
एक बार “धुंध अब छंटने लगी, अरुणोदय होने लगा … ” और “ये सफर रेल का… ” पढ़ें और अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया दें.
Very nice Davendra ji….
very nice ………………
अमूल्य प्रतिक्रिया हेतु आप सभी को हार्दिक आभार।