दीवार की मुंडेर पर बैठआजकल रोजाना एक पंछीडैने फैलाए धूप सेकता हैउसे देख भान होता हैउसकी जिन्दगी थम सी गई हैथमे भी क्यों ना ?अनवरत असीम और अनन्तआसमान में अन्तहीन परवाजे़हौंसलों की पकड़ ढीली करती ही हैंकोई बात नही……,विश्रान्ति के पल हैंकुछ चिन्तन करना चाहिएपरवाजों को कर बुलन्दपुन: नभ को छूना चाहिए .×××××”मीना भारद्वाज”
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बहुत ही गहरा है तुम्हारा चिंतन। बहुत खूब मीना।
तहेदिल से शुक्रिया मंजूषा जी .
Ver philosophical and lovely write Meena ji
Thank you so much Shishir ji .
सुंदर भाव हैं मीना जी ,ज़िंदगी में विश्राम की बड़ी अहमियत है
हार्दिक धन्यवाद किरण जी ।
वाह……क्या चिंतन है….मंतरमुग्ध कर दिया…. हर किसी की रचना है यह….बेहतरीन……
तहेदिल से शुक्रिया शर्मा जी .
अति सुंदर चिंतन……………..
तहेदिल से शुक्रिया मनी जी .
बेहतरीन भावों से सुसज्जित रचना.
हार्दिक धन्यवाद विजय जी .
अच्छा चिंतन ………..अति सुन्दर !!
हार्दिक धन्यवाद निवातियाँ जी .
बहुत सुंदर रचना मैम…………….
Hardik dhanywad Alka ji.