किसी का बाप, बेटा, पति, बन,कुछ कमाने, घर से निकाला हूँ,,शाम को जल जाये चूल्हा घर में,सोच कर मैं, घर से निकला हूँ,,पुराने से कपडे है शरीर पर मेरे,उधड़ी सी चट्टी डाल निकला हूँ,,कल की उतार थकावट सारी,मुस्कुराकर काम पर निकला हूँ,रोज जमी खोद कर पीता हूँ जल,मैं अपने दम पर जीने निकला हूँ, इल्म है मुझे धनी चूसते खून मेरा,अपने सब्र को आजमाने निकला हूँ,धुप से दोस्ती, छाँव से है मेरी दूरी,पसीने की महक मैं, पाने निकला हूँ,,आ जाये मुझे नींद जमी पर रात को,ऐसी नींद की चाहत लिए निकला हूँ,, रोज कमा,रोज खर्च हूँ करता मैं,सिर्फ कुछ खुशियाँ बचाने निकला हूँ,बेफिक्र हूँ कुछ खोने के डर से,बेख़ौफ़ सा हो, राह पे निकला हूँ, दुर्भाग्य मेरे जीवन में छाया हरदम,उसे सौभाग्य में बदलने निकला हूँ,,बस सीधी सी जिंदगी है “मनी” मेरीमैं अपनों का पेट भरने निकला हूँ,,फैलाना आता नहीं मुझ को हाथ,श्रम ही जीवन, सोच ले निकला हूँ, उठाना है मुझे सारे जग का बोझ,मैं मजदूर, मजदूर बन निकला हूँ,मनिंदर सिंह “मनी”चट्टी—–चप्पल
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बहुत खूब लिखा आपने एक मजदूर के जीवन की कहानी. बहुत सुंदर…………………
bahut bahut dhanywad vijay sir apka……………………
मजदूर की कठोर दिनचर्या का सजीव चित्रण कर दिया है आपने शब्दों के माध्यम से .
बहुत बहुत आभार आपका मीना जी……………….
बहुत अच्छी रचना……………
धन्यवाद योगेश जी बहुत बहुत आपका…..
मजदूरों के हालात और दर्द का बहुत ही खूबसूरत चित्रण किया आपने मनी। बहुत बढ़िया।
तहे दिल आभार मञ्जूषा जी आपकी इस सरहाना के लिए…..
हमारे देश में अंगिनित लोग हैं जिनके दिल की बात को बड़े सुंदर ढंग से पेश किया है आपने मनी जी ,बहुत सुंदर रचना
बहुत बहुत शुक्रिया किरण जी इस उत्साहवर्धन के लिए आपका….
मनीजी…कमाल करते हैं आप….लाजवाब…..
सी एम् शर्मा जी सब आपका आशीर्वाद है सर……बहुत बहुत आभार आपके इस प्यार के लिए
श्रमिक के भावो को अच्छे शब्दो में उकेरा है आपने …………अति सुन्दर !!
thank you so much nivaatiya sir……………