कब तक जिओगे डर के साये में,दुनियां को देखों बाहर निकल के।बद्सूरत भी नहीं है उतनी,तुमने कल्पना की होगी जितनी।लोग भी बुरे नहीं है उतने,जितना सोचा होगा तुमने।ये सच है बुराई की हदे बड़ी है,पर कब तक जिओगे डर के साये में?अच्छाई अभी पूरी तरह खतम नहीं हुई है,जीने का नाम ही ज़िन्दगी है।एक हाथ बढ़ाकर तो देखो,मदद के लिए काफी हाथ आगे बढेगे।अपना दर्द बांटकर तो देखो,तुम अकेले नहीं हो इस भीड़ में।औरो का दर्द भी सुनकर देखो,शायद बहुत छोटा हो तुम्हारा गम।अपने अंदर की उम्मीद को जगाओ तुम,ज़िन्दगी बहुत अनमोल है,ईसे यु डर के साये में जाया न होने दो।सुबह की सूरज की किरणें,किसी भी पल मन का अँधेरा दूर कर,उमंगों और आशाओ से,जीवन को भर देगी।बस हिम्मत मत हारना,हौसला बनाए रखना,जीने का नाम ही ज़िन्दगी है,जीने का नाम ही ज़िन्दगी है। “अनु महेश्वरी”चेन्नई
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खूबसूरत प्रेरक रचना। …………..ati sundar !!
Thank you, Nivatiya ji…..
very touching and filled with positivity Anu …..
Thank you, Shishir ji…..
बहुत सुंदर प्ररेक रचना………………………..
Thank you, Vijay ji…..
ati uttam soch soch anu ji apki………………………..
Thank you, Mani ji…..
लाजवाब……..प्रेरक …..ऊर्जा प्रदान करती……??
Thank you, Sharma ji…
जीवन को प्रेरणा देती अनचाही रचना है अनु जी
क्षमा चाहती हूँ शब्द ग़लत छप गया है ,आछि रचना है अनु जी
जीवन को प्रेरणा देती अछी रचना है अनु जी
Thank you, Kiran ji….