**जय चंदों से हारे है:Er Anand Sagar Pandey**
मेरी कलम नहीं उलझी है माशूका के बालों में,
मेरे लफ़्ज नहीं अटके हैं सुर्ख गुलाबी गालों में,
मैने अपने अन्दर सौ-सौ जलते सूरज पाले हैं,
और सभी अंगारे अपने लफ़्ज़ों में भर डाले हैं,
मैने जज़्बातों को गंदी राजनीति से दूर रखा,
और दहकते शब्दों में बारूदों का दस्तूर रखा,
चाहे कुछ भी हो मैं अपना पौरुष नहीं झुकाता हूं,
यही वजह है सच को मैं बेबाकी से कह पाता हूं,
और सच ये है कि-
हमने भू पर रश्मिरथी के घोड़े लाख उतारे हैं,
लेकिन हम अपने ही घर में जयचंदों से हारे हैं ll
हमने दुनिया की पुस्तक में सत्य,अहिंसा बोल लिखा,
लेकिन जब तलवार उठाई,दुनिया का भूगोल लिखा,
हिमशिखरों का सिर भी हम तक आते ही झुक जाता है,
सागर की लहरों का गर्जन हमसे मिल रुक जाता है,
हम राम-कृष्ण के धामों वाली पुण्य धरा के वासी हैं,
हम भगत सिंह के वंशज हैं, जय भारत के अभिलाषी हैं,
लेकिन जब-जब इस धरती पर देश विरोधी नारे हैं,
तब लगता है अपने घर में जयचंदों से हारे हैं ll
हमने सारी दुनिया को तारों की भाषा समझायी,
हमने शून्य दिया तब जाकर दुनिया को गिनती आई,
हमने दान हेतु मुस्काकर कुण्डल-कवच उतारे हैं,
और पितामह के पौरुष में सब प्रतिबिम्ब हमारे हैं,
हमने शिमला ताशकंद में दानवीरता दिखलायी,
और पराक्रम की परिभाषा इस दुनिया को समझायी,
हमने दुश्मन के घर में घुसकर भी दुश्मन मारे हैं,
फ़िर भी हम अपने ही घर में जयचंदों से हारे हैं ll
हमने सीमा पर अपना ये शीश काटकर टांग दिया,
मगर स्वार्थ के जयचंदों ने इसका सूबूत तक मांग दिया,
इस मिट्टी के हर कतरे में शौर्य हमारा जिन्दा है,
लेकिन साहस और पराक्रम आज बहुत शर्मिन्दा है,
आज हमें कुर्बानी की भी चीख सुनाई देती है,
और संसद की ईंटों में अपनी लाश दिखाई देती है,
आज हमारी आंखों में भी बुझे हुए लश्कारे हैं,
बारूदी आंखें कहती हैं जयचंदों से हारे हैं ll
गद्दारों तुम बलिदानों का ऐसे मत अपमान करो,
ऐ दिल्ली! तुम लाल किले से जाकर ये ऐलान करो,
कि हवा पे थूकने वाले सारे पर अब छांटे जायेंगे,
अब जो भी बागी शीश उठेंगे, काटे जायेंगे,
अब देशद्रोह बर्दाश्त न होगा गद्दारों को समझाओ,
ऐ अर्जुन! ये धर्मयुद्ध है आज पुन: गाण्डीव उठाओ,
हर भारतवासी के दिल में रक्तरचित अंगारे हैं,
कड़वा है पर सच है कि हम जयचंदों से हारे हैं ll
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-Er. Anand Sagar Pandey,”अनन्य”
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बहुत सही….सटीक…यथार्थ…….लाजवाब शोले हैं……लाजवाब……….
Very nice………
बेहतरीन रचनाएँ हैं……………..बेहतरीन कटाक्ष के साथ…………
चाँद रचनाएँ मेरी भी पड़ी हैं, नजर करें और अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया दें.
“काश ! चाँद छिपता चांदनी के बिन…”
“वक़्त जो थोड़ा ठहरता…”
“धुंध अब छंटने लगी, अरुणोदय होने लगा है…”
Marvelous outburst of the emotions Anand…..
बहुत खूबसूरत …………………..!!