इक सुंदर कविता…,क्या होतीकवि के भावों को, शब्दों में है पिरोतीकुछ तीखी, कुछ नटखटशोर-सरावा, झटपटकुछ आशाएँ, कुछ उम्मीदेंरिश्तें-वादों की रशीदेंअनेकों हुए कवि, अनगिनत कविताशब्द कम पढ़ते नहीं, हर रोज़.., इक नई कविताकई…विख्यात हुए, कई… रह गए गुमनामकुछ आशिक हुए, कुछ हुए बदनामकुछ को मंच मिला, कुछ को मिला पुरुष्कारन जाने कितने हुए, जिनको मिला तिरष्कारलिखना किसी ने न छोड़ा, चाहे मिला हो जो रंगइक कवि को, कागज़-कलम-स्याही का, मिलन ही होता सतसंगइसीलिए कवि की कविता, बहुत इतराती हैकुछ को हंसती तो कुछ को रुलाती हैकुछ को किसी अपने की, याद दिलाती हैशब्द-रचना में रचकर, इक कवि की कविता… अमर हो जाती हैइक सुंदर कविता यही कहलाती हैइक सुंदर कविता यही कहलाती हैभागचन्द अहिरवार “निराला”
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sir I am a big fn of u
Thank You……
बहुत खूब………….सही कहा……….
सुंदर रचना……………….
चंद रचनाएँ मेरी भी पड़ी हैं, नजर करें और अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया दें.
“काश ! चाँद छिपता चांदनी के बिन…”
“वक़्त जो थोड़ा ठहरता…”
“धुंध अब छंटने लगी, अरुणोदय होने लगा है…”