इतनी तफ़्सीर तू मुझे आज सुनाता क्यूँ हैं….कर दे आँखें जो ब्यान दर्द वो छुपाता क्यूँ है….ख़ुशी हर पल रही दूसरों की काबिज तुम पर….लेकिन अपनी ही ख़ुशी दाव पे तू लगाता क्यूँ है…..दिल है सीने में मेरे और होता है बेचैन भी ….अपना कहके मुझे बेगाना हो सताता क्यूँ है….है नहीं दुनिया तेरे प्यार के काबिल फिर भी…प्यार दिलोजान से इनपे तू लुटाता क्यूँ है….खुदा तो प्यार ही बांटा है लेकिन इंसान…..दिल को पत्थर और पत्थर देव बनाता क्यूँ है…बस एक बोल और लिखने के सिवा तुम “चन्दर”….जब किया है नहीं कुछ, शोर मचाता क्यूँ है….\/सी. एम्. शर्मा (बब्बू)तफ़्सीर = विस्तार से बताना
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बेहतरीन……….लाजवाब…………….
तहदिल आभार आपका………विजय जी….
Lovely write Babbu ji. I feel a minor correction in first line of 3rd couplet from readability point of view will be appropriate. Please consider. Like ” dil hai seene me mere or hota hai Bali hain bhi”
जी सही कहा आपने….तहदिल आभार आपका…मधुकरजी…..
Bali hain must be read as Baichain
ji……………….
Mst…………. Waaaaaaah
तहदिल आभार आपका………सविताजी….
Bahut hi umda kavita hai aapki Babbu ji . Bahut khoob.
तहदिल आभार…manjushaji…….
Very nice Sharma ji….
तहदिल आभार आपका……anuji………..
Bahut hi sundar aur sateek rachna Sir!!!????
बहुत बहुत आभार आपका स्वातिजी…………
बहुत खूब……..,बेहद खूबसूरत……..।
बहुत बहुत आभार आपका……meenaji…….