-:फूटपाथ:-ए ज़िन्दगी बड़ी मगरूर है तूफुटपाथ पर सोते देखा, कितनी बेबस,कमजोर है तू।।है पत्थर सीने में, दिल नहीदेखा न वहां, पेट कोई ऐसा,जिस में भूख से पड़े बल नही ।।न तन पर कपडा दिखता है , ना भूखे पेट को निवाला मिलता है।देख तेरी महलों की दुनिया में,इक जहाँ फुटपाथ पर भी बस्ता है।।खुशियों का दिखा आइना,ग़मों से कराती रूबरू है तू ।।लेखक:- सोनू सहगम
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सुन्दर अभिव्यक्ति ………..रचना को और अधिक लयबद्ध किया जा सकता है !!
धन्यवाद ! डी के जी ….आगे से ध्यान रखेंगे …. एक बार फिर धन्यवाद !
खूबसूरत अभिव्यक्ति ……बीच में आके शिथिल सी हो गयी लगती…….
Very nice sir??
बहुत बढियां फुटपाथ की दशा ऐसी ही होती है