महोब्बत कर लेते हम भी, साथ गर दे जाते तुम भी जीत लेते हम तो दुनिया, साथ में होते गर तुम भी महोब्बत कर लेते ………………………………………. गर तुम भीकरे हमने बहुत सजदे नही छोड़ी कमी कोई तुम्हे पाने की इच्छा में सभी खुशियाँ हमने छोड़ीतुम्हें जिन्दा रखा हमने हरपल याद में अपनी कमी कोई नही है पर तेरी हरपल कमी रहतीमहोब्बत कर लेते ………………………………………. गर तुम भी पूरे भूलोक में सुन्दर कोई तुमसा नही दिलबर तेरी पूजा करूं बस मैं मेरी हमराज़ हो दिलबर हो जाओ रूबरू हमसे यही है आस जीवन कीमुद्दत से खुवाईश है बहारें फिर भी आयेंगी महोब्बत कर लेते ………………………………………. गर तुम भीवो साथी छोड़ गया हमको जिसे था जान से प्यारा जख्म वो दे गया दिल में जिसे था प्यार से प्यारा प्यासी रूह है मेरी उसी की चाहत में अब भी सच तो है यही इतना रही जल चाहत में वो भी महोब्बत कर लेते ………………………………………. गर तुम भी “मनोज कुमार”
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बहुत ही सुंदर गीत ………………….
Thanks a lot Vijay Ji
बहुत सुन्दर……मनोज जी……..
Thanks a lot Babbu Ji
manoj this work needs improvisation. I could not find it fit and very sorry for being blunt.
hardik aabhar shishir ji
मनोज बहुत अच्छा लिखते है आप ……मगर इस रचना में मुखड़ा ही कुछ सटीक नही बैठ रहा है……………”मुहब्बत करे लेते हम भी साथ अगर तुम दे जाते”…. साथ मुहब्बत करने पर मिलता है, यंहा आप के भाव तो उचित है लेकिन उनको बयान करने के लिए शांब्द संयोजन में भटकाव नजर आता है…. जंहा तक मई समझ पाया हूँ शायद आप कहना चाहते है ……
साथ मुहब्बत में अगर मिल जाता, कुछ पल जी लेते हम भी
जीत लेते इस दुनिया को हम अगर साथ निभा जाते तुम भी !!
मेरे विचारो को अन्यथा न ले …..सबके अपने भाव भिन्न हो सकते है ! मगर रचना की सुंदरता तभी जब भाव सम्प्रेषण लयबद्ध हो…. बाकी सम्पूर्ण रचना को एक बार अवलोकन करेंगे तो आप स्वयं ही जान जायेंगे !!
Thanks nivatiya ji
Nice poem.. manoj ji??
Thanks Swati ji