मुद्दत के बाद आज वो एहसास पाया है,
खोया था कोई जिसको आसपास पाया है।
रुक्सत हुई थी ख़ुशी कभी मेरी जिंदगी से,
सदियों के बाद फिर से खुद को ख़ास पाया है।
मुद्दत के बाद आज वो एहसास पाया है,
खोया था कोई जिसको आसपास पाया है।
आज शहर-ए-मोहोब्बत में हमने फिर से रखे कदम,
आज फिर उसी हंसी चेहरे पे फ़िदा हैं हम।
वो भी आज देखके मुझे फिर से मुस्कराया है..
मुद्दत के बाद आज वो एहसास पाया है,
खोया था कोई जिसको आसपास पाया है।
रूबरू हुए हैं अपने प्यार से अभी,
आया ये जो लम्हा ना निकले हाथ से कभी।
अरसे के बाद उसने सीने से लगाया है..
मुद्दत के बाद आज वो एहसास पाया है,
खोया था कोई जिसको आस पास पाया है।।
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बहुत सुंदर रचना………………….
एक बार “काश ! चाँद छिपता चांदनी के बिन…” और “वक़्त जो थोड़ा ठहरता…” पढ़ें और अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया दें.
धन्यबाद विजय जी।
Nice creation……………………………….
धन्यबाद मनोज जी।
बहुत खूबसूरत………
धन्यवाद बब्बू जी
lovely creation ………………………….!!
बहुत बहुत आभार सर