मैंऔरतुम थेमिले जबलम्हें हसीं थेहर रात हसीं थीहर सुबह रंगीन थीफिर ना जाने अमावसकैसे कहाँ से आ गयी किहम हम नहीं रहे तुम तुम नहींदूरियां यूं ही बढ़ती बढ़ती एक दिनहम दोनों में बस अपनी मैं ही रह गयीएक होने को दोनों को अपनी मैं खोनी होगीजो ना अब तुम खो सकती हो और ना मैं ही अबमैंएककला हैमिलने कीअपने आप सेअपने ही प्यार सेजो स्वतः ही आ जातीशर्त यह की दिल एक होंजिस्म की पहचान ख़तम होरूह बनना बनाना दोनों अलगएक रूह बन के बिछड़ सी जाती हैएक बिछड़ के रूह में समा जाती है जबतब सिर्फ मैं ही रहता है वो दिलबर हो या इष्टमैंएककला हैमिलने कीअपने आप सेअपने इष्ट से जोहठ है एक योगी काप्राणों को व्यवस्थित करमन को निग्रह निर्विचार करअपने चक्रों को जागृत करने काऊर्जा को सुष्मना में प्रवाहित करकेआत्मा से साक्षात्कार का समागम कातब यह योगी की ही उद्घोषणा होती हैअहम ब्रह्मास्मि मैं ही ब्रह्म हूँ और कोई नहींयह मैं की यात्रा है मूलाधार से सहस्रनार तक कीहठ है योगी का अपनी मैं से अपने इष्ट से मिलने का\/सी. एम्. शर्मा (बब्बू)….
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Behtreen rachna ………
तहदिल आभार आपका……मधुकरजी……
lajawab……behtarin…sir…….
बहुत बहुत आभार आपका……मनी जी…..
Very nice Sharmaji….
बहुत बहुत आभार आपका……
जीवन का महत्त्व दर्शाती खूबसूरत भावो से परिपूर्ण, वर्णपिरामिड विधा से सुस्सजित उत्तम रचनात्मकता, आपकी कला कुशलता बहुत उम्दा है बब्बू जी !!
तहदिल आभार आपका ….आपमें वचन निसंदेह ही ऊर्जा स्रोंत हैं … बहुत बहुत आभार…..
Sir!!! Bahut hi sundar rachna aur sundar pramid????
बहुत बहुत आभार आपका……..
Nice one Babbu ji
तहदिल आभार………………
बहुत ही सुंदर रचना………………….लाजवाब
बहुत बहुत आभार आपका विजयजी……
कबीर जी की याद दिला दी शर्मा जी अन्तिम पिरामिड में .सुन्दर सृजन .
बहुत बहुत आभार आपका दिल से मीनाजी…..कबीरजी…भक्ति मार्ग के पथ प्रदर्शकों में आते जो मुझे ज्ञात है…जैसी मीरांजी…गुरु नानक देवजी … नामदेवजी…चैतन्य महाप्रभुजी… जिस बात को ले के मन में भाव उठे थे वो स्वामी राम तीर्थजी से सम्बन्ध रखते हैं जो एक महान योगी रहे हैं….