मछली- मछलीमछली- मछली इधर तो आ,आकर अपना नाम बता।डर मत मछली आ भी जा,और आकर के खाना खा जा।मछली-मछली मान भी जा,हठ मत कर और न शर्मा।तुझको हाथ लगाऊँ मैं तो,मुझको आये बड़ा मजा।मछली- मछली एक बात बता,पानी से तेरा साथ बड़ा।और बिन पानी तेरा होगा क्या?मैंने अब यह लिया है मान,पानी ही तेरा जीवन दान।क्या करूँ मैं और बखान?बिन पानी तेरे निकले प्रान।सर्वेश कुमार मारुत
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सुन्दर……………..
धन्यवाद
बहुत सुंदर रचना ……………………….
एक बार “काश ! चाँद छिपता चांदनी के बिन…” और “वक़्त जो थोड़ा ठहरता…” पढ़ें और अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया दें.
धन्यवाद! विजय जी
badiya sir………………..
धन्यवाद
lovely creation …………..
धन्यवाद
बेहतरीन रचना …………………………
धन्यवाद