ये दिल सिवा तुम्हारे कोई जानता नहीं….कुछ भी कहूँ इसे मैं ये मानता नहीं….अपनों और परायों का हुजूम बेशुमार…फिर भी है दिल परेशान कोई जानता नहीं….धुंआ धुंआ सा उठता है आँखों में मेरी…जैसे हो कुछ सुलगता पर दागता नहीं….आँखों की दोस्ती में जुबां खामोश है….दिल बेसब्र सा मेरा कुछ मानता नहीं…..है वक़्त की नदी में मेरे प्यार की पनाह….लेकिन जुनूँ मेरा मुझे संभालता नहीं….दिल की बात होंठों पे आ दब के रह गयी…इक सरसराहट हुई पर रास्ता नहीं….अरमान तेरे दिल के कसम मेरे इश्क़ की…..हो जाएंगे पूरे खुदा मानता नहीं……’चन्दर’ की दास्तान है ‘बब्बू’ इश्क़ की जुबां….दो जिस्म जान एक जहाँ जानता नहीं….\/सी. एम्. शर्मा (बब्बू)
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Behad bhavuk prem bhaav yukt rachnaa Babbu ji
बहुत बहुत आभार आपका……
कमाल की गजल, बहुत खूब…..लाजवाब.
तहदिल आभार आपका……
Beautiful ghazal Sharmaji…..
बहुत बहुत आभार आपका……
भावो की ले में ह्रदय को ही जैसे कागज़ पे उतार कर रख दिया हो………….उम्दा भाव सम्प्रेषण …………बहुत खूबसूरत बब्बू जी !!
बहुत बहुत आभार दिल से…….
Waaaaaaah………….
बहुत बहुत आभार आपका……
बेहद खूबसूरत सृजन शर्मा जी .
बहुत बहुत आभार आपका…मीनाजी…..
आँखों की दोस्ती में जुबां खामोश है….
दिल बेसब्र सा मेरा कुछ मानता नहीं…..
बहुत ही सुंदर….
तहदिल आभार……..
Sir!!! Very very nice poetry????
तहदिल आभार……..
बहुत खूबसूरत बब्बू जी
तहदिल आभार……..