घूंघट में चाँद मेरा, दीदार हो तो कैसे हो,कुछ वो शर्माये, कुछ हम, दीदार हो तो कैसे हो,, दूरियों को मिटाने की चाह दोनों तरफ एक सी,हिम्मत ना वो जुटा पाए, ना हम, दीदार हो तो कैसे हो,,कहीं लग ना जाये बुरा, किसी ने कुछ कहा अगर,सोच ना वो कुछ कह पाए, ना हम, दीदार हो तो कैसे हो,,मुलाकाते हर रोज हुआ करती थी कभी बेख़ौफ़ सी,आज जाने क्यों मन बेचैन, दिल घबराये, दीदार हो तो कैसे हो,,कभी ढूंढा करते थे बहाने दीदार ऐ सूरत को,ना वो उठाये घूंघट, ना अब हम, दीदार हो तो कैसे हो,,तड़पती मादक सी प्यास दिलो के दरमियां दोनों के,ना वो कोशिश करे, ना हम, दीदार हो तो कैसे हो,,कटार से हैं नैन उसके, और हम कत्ल होने को बेकरार,ना वो कटार चलाये, ना आगे बढे हम, दीदार हो तो कैसे हो,, अपने यौवन पर है हमारे मिलन की रात “मनी”,ना वो घूंघट उठाये, ना हम, दीदार हो तो कैसे हो,,
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खूबसूरत………………
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thank you so much sir………………
Bahut bahut badiya sir????
tahe dil abhar paka dr swati ji…………….
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thank you meena ji………….
बहुत सुंदर,……………………….
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बेमिसाल ………………………….
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