अभी-अभी थे
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- उसके स्तन
नीली ब्रा के रेशमी कैन्वस पर रौशन
नाभी की तारीक[1] गली में
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- सब्ज़ घास पर
चढ़ती ख़्वाहिश की
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- च्यूँटी
जुनूँ के नक़्शे पा
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- पिस्ताँ[2] तक जाते हुए
फिसल पड़े गहरी खाई में!
होठों के सोफ़े पर बैठी
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- हवस तितलियाँ
चाँद से लिपटी
लहू की मौजें
पीला सूरज सुखा रहा था
नारियल के ऊँचे पेड़ों पर गीले कपड़े
बर्गे-मिज़गाँ[3] से उतरा
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- इक सुर्ख़ सितारा
ग़र्क़ हुआ फिर
अंधकार के पानी में
चूम रही थीं गर्म पिंडलियाँ
रेत पे लेटी नंगी शाम
रानों की रंगीन मछलियाँ
फ़रार होने को बेताब!
उड़े-उड़े-से मेरे ख़्वाब!!
शब्दार्थ:
- ↑ अँधेरी
- ↑ स्तन
- ↑ पलकों के पत्ते