सपनों से निकल हक़ीक़त बन आओ कभी…अपने दिल से तुम मुझे पास बुलाओ कभी…दूर से मुस्कुरा के और ना तड़पाओ मुझे…दामन अपने में छुपा के सहलाओ कभी…बन के चाहत हर पल संवारते हो मेरे….उर मेरे में विचर के पायल छनकाओ कभी…नहीं कोई भी जहाँ में है तुमसा प्यारा….प्यार मेरा हो मेरे लिए भी आओ कभी…हर सजा तेरी कबूल है मुझे सनम….हक़ जता के सजा अपनी सुनाओ कभी…ज़िन्दगी कब बिखर जाए क्या पता…शामें जीवन में सहर बन के आओ कभी…है अधूरा बेसुरा सा मेरा जीवन संगीत….हंसी अपनी से सरगम मेरी सजाओ कभी….नहीं है आता मुझे प्यार जताना ए सनम….प्यार की देवी मुझे प्यार सिखाओ कभी…बहुत है रोएं ज़िन्दगी में तन्हा तन्हा…बन के किस्मत गले अपने लगाओ कभी…हर पल तेरे दीदार को तरसे ये मेरी प्यासी आँखें….रगों में बहाकर अपने लहू को मुझे नहलाओ कभी…कौन देता है साथ उम्र भर “चन्दर” कहाँ कभी…साँसों में बस के मेरी उम्र बढाओ कभी…\/सी.एम्. शर्मा (बब्बू)….
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Very nice Sharma ji. Congrats.
बहुत बहुत आभार आपका उत्तम जी…….
Very nice poetry Babucmji….
बहुत बहुत आभार……
बहुत है रोएं ज़िन्दगी में तन्हा तन्हा…
बन के किस्मत गले अपने लगाओ कभी…
बहुत ही मर्मस्पर्शी।
दिल से आभार डॉ.विवेक जी…..
अति सुन्दर बब्बू जी
बहुत बहुत आभार मनोज़ जी…..
wah sir kya baat hai………………..dil ko chu gaye alfaz….ab to ana padega…………….
बहुत बहुत आभार आपका….मनी जी….
बहुत उम्दा बब्बू जी, चाहता की खूबसूरत मिसाल पेश की है आपने, एक शेर बहुत भाया अगर ऐसे ऐसे सजाये तो कैसा लगे
हर पल तेरे दीदार को तरसे ये मेरी प्यासी आँखें….
रगों में बहाकर अपने लहू को मुझे नहलाओ कभी
तहदिल आभार आपका….मैंने बदल दिया है शेर सर…..
सर, गजल को कुछ समय मेरे पास भी भेजें. अति सुंदर……………
तहदिल आभार आपका….सर हम और ग़ज़ल आपके ही हैं….हा हा हा….
Bahut hi sundar rachna Sir??????
बहुत बहहत आभार आपका……
बहूत सुन्दर ग़ज़ल शर्मा जी ।
बहुत बहुत आभार आपका मीना जी……..