खुद अपनी तामीर मिटाने चले होसहरा को समंदर बनाने चले हो। बातें करता है ज़माना अब तोकि तुम अपनी तकदीर मिटाने चले हो सहरा को समंदर बनाने चले हो। आफ्ताब की रोशनी फिकी पड़ गईतुम हो कि चरागो को बुझाने चले हो सहरा को समंदर बनाने चले हो। गले मिलते ही पीठ में खंजर उतार देते हैंदुश्मनों से तुम यारी निभाने चले हो सहरा को समंदर बनाने चले हो।
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Nice work……….
Thanx Mr.Shishir “Madhukar”
खूबसूरत शेर हैं………
Dhanyavaad Sir..
very nice. keep writing
Thanx Sir
अति सुंदर……………
मेरी रचनाएँ “काश ! चाँद छिपता चाँदनी के बिन” और “वक़्त जो थोड़ा ठहरता” आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में है.
g bht bht shukriya aapka