एक कोमल सी कलि बन खिलती है वोसुगंध सी, मिठास सी घुल मिलती है वोमुझे गुमान है अपने मर्दाने अस्तित्व परस्त्री के मजबूत कोख में जो पलती है वोअहसास उसका शक्ति है हर रोम कीगूँजती है अक्षत जैसे रूह हो ओम कीहर चेतना में बसता है स्त्री का रूपविद्या, लक्ष्मी, दुर्गा या मातृ स्वरूपजो स्त्री को मिली कोमल कायासुंदर मधुर चंचल शीतल छायाजिसके कारण आनंद उमंग बरसेसृजना, करुणा, त्याग से मन हर्षजिसके वक्ष से निरंतर प्यार है रिसताप्यार के आँगन में जीवन को सींचताक्यों करे पौरुष से स्त्री की समानताधरती की तुलना जैसे आसमान काशक्ति स्वरूप की पहचान सबको हो ज्ञातसशक्तिकरण स्त्री की है अज्ञानियों सी बातभोग वस्तु कहते असुर, विलासीगंगा से ही बनी है शिव की काशी
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नारी छवि को परिभाषित करती उसके व्यक्तित्व का सटीक चित्रण ……………बहुत खूबसूरत उत्तम जी !!
Thank you very much.
narri ki uttam chavi pesh ki aapne…….bahut badhiya sir…………………
Thanks Mani ji.
बहुत बढ़िया………
Thanks Sharma ji
Marvelous great write Uttam ji. Every line is so very true and touching.
Your response is overwhelming. Thanks
बहुत खूबसूरत………. उत्तम जी
अति सुंदर…………………….