Homeजयंत परमारनज़र-ए-ग़ालिब नज़र-ए-ग़ालिब विनय कुमार जयंत परमार 21/03/2012 No Comments तुंद शोले मेरी लह्द में थे तौफ़-ओ-तावीज़ भी सनद में थे दिल ने चाहा छुपा लूँ आँखों में वे सितारे जो दिल की हद में थे इन जुनूँ सरपसंद था गोया कुछ शफ़क़ हौसले शबद में थे जब भी पढ़ता हूँ ताज़ा लगते हैं रंग क्या-क्या मियाँ असद में थे Tweet Pin It Related Posts शहर बेसुतूँ आसमान है मेरा पेंसिल-2 About The Author विनय कुमार Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.