Happy Narak Chaudas ?..दीपावली से एक दिन पहले आता है,नरक चतुर्दशी का त्यौहार,कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को,हम मनाते हैं ये त्यौहार,नरकासुर एक राक्षस था,जिससे दुखी था संसार,बनाकर बंदी सोलह हजार कन्याओं को,एक बार उसने किया था ये घोर पाप,दुखी थी सारी कन्यायें बेचारी,इसलिए आहवान कृष्ण का करने लगीं,प्रभु आकर बचाओ लाज हमारी,कृष्ण ने वध किया तब नरकासुर का,और पाप का अंत किया,कन्याओं को चिंता थी ये,बन्दी रहीं वो सब एक राक्षस की,इसलिये कोई और न उन्हें स्वीकारेगा,विनती की उन्होंने कृष्ण से तब,हम सारी आपकी शरण में आयी हैं,कृपा करदो हम पर इतनी,हमको दो मुक्ति का द्वार,सम्मान दिलाया कृष्ण ने उनको,करके उन सब से स्वयं विवाह।प्रभु की शरण में जो भी जाता है,छूट जाता है भव बंधन से,पा लेता है मुक्ति का द्वार।इसी ख़ुशी में मनाते हैं,हम सब ये पावन त्यौहार।By: Dr Swati Gupta
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स्वातिजी….बहुत सुन्दर प्रस्तुति है आपकी….कुछ धर्म ग्रंथों में हमें समझाने के लिए बहुत सी कहानियां बनायी हैं…कुछ दृष्टान्त जो दिए गए हैं ग्रंथों में वो किसी विशेष परिस्थितयों को इंगित करती होती हैं और कुछ आगे पीछे की घटनाओं को ले कर…ऐसे ही ये भी एक है…..जहाँ तक मैंने कहीं किसी जगह पढ़ा है की हमारे शरीर में चेतन अचेतन अवस्थाएं होती हैं वो १६,००० होती हैं…कुछ कहते हैं की आयुर्वेद में १६००० नदियों का ज़िक्र है शरीर की….उसके शोधन की कहानी है…जब हम उन १६००० नाड़ियों का शोधन कर राक्षसी प्रविर्ति से छुटकारा पाते हैं तो प्रभु की शरण में जाते हैं….लेकिन हर एक इंसान की समझने की प्रविर्ति भी अपनी है…..
Thanks a lot sir to explain the real meaning of it… Happy deepawali?
और एक चीज़ जो मेरी समझ में आती है….जितने भी महानपुरुष हुई हैं भक्ति मार्ग के ..जिनको आज हम परमात्मा स्वरुप मानते हैं या झुकते हैं जिनके आगे….उन सबने ही सिर्फ भगवान् को “पुरुष” माना है बाकी सब जीवों को “स्त्रीलिंग” में रखा है….और गुरु नानक देवजी ने तो अपनी वाणी में भगवान् को “खसम” बोला है…… जिसका मतलब पति होता है…क्यूंकि वो समर्पण का मार्ग है…..
You r great sir!!! Thanks again?
अच्छी रचना…………
Thanks a lot sir!!
बहुत ही सुंदर………………
Thanks a lot kajal ji!!
आपकी रचनाओं से हर दिन का महत्व समझ आता है. बहुत सूंदर……………..
Thanks a lot vijay ji!!!
भारतीय संस्कृति की यही पहचान है की परम्परागत रूप में मनाये जाने वाले पर्व आदि की प्रष्ठभूमि में अनेको अनेक कहानिया या मान्यताये जुडी हो …….और इन सब का सिर्फ एक ही मकसद होता है कि असत्य पर सत्य की विजय, और सद्मार्ग पर चलने का अनुकरण कर पीढ़ी दर पीढ़ी ज्ञान और सन्देश को जीवन्तता प्रदान की जाये । तथ्य कुछ भी हो मकसद सभी का एक है ।
ऐसी रचनाये बहुत ही लाभप्रद होती है जिनके सहारे विचाराभिव्यक्ति को बल मिलता है ।
बब्बू जी ने पहले ही बहुत कुछ स्पष्ट कर दिया है । जो पूर्णतया सत्यता का धोतक है ।
आपको और बब्बू जी को हार्दिक बधाई ।।