शांत रहिये, शांत रहियेयह शब्द क्यों चुभने लगे है आज कल ,क्या शांत रहने के लिए ही ,ईश्वर ने दी थी जुबान।गिला नहीं है कुछ भी तुमसे ,गिला है तो उपरवाले से ,क्योकि ,समझता है हर कोई मुझ को ,मगर जो सुन भी सके ,ऐसे लोग ,इस धरती पर गिनती के हैं छोड़े।औरों की तो बहुत सुन चुकी ,अब अपनी कहना चाहतीं हूँ ,पंछी बन कर उड़ना और ,हवा संग फिर बहना चाहती ,अब अपनी कहना चाहती हूँ।सुख तो सारे दे डाले तुमने और ,सुविधाएँ भी एक ना छोड़ी ,मगरअपने मन की ख़ुशी के लिए ,थोड़ा तो जी लेने दो ,कहना हैजो सबसे अब तो कह लेने दो।सूख गए आँसुओं को थोड़ा तो ,थोड़ा बह लेने दो ,मन मे है ,जो है सब अब तो कह लेने दो ,चाहे बन कर कविता या ,बन जाए मेरी बक बक।करो मत शांत मुझ को ,कहना है जो सब मुझ को ,रोको मत आज मुझे ,अब तो कह लेने दो ,समय केसाथ मुझे थोड़ा बह लेने दो ।
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वाह आदरणीया बहुत खूब.
बहुत बहुत धन्यवाद अभि तुम्हारी सूंदर प्रतिक्रिया के लिए। तुमको दीपावली की बहुत बहुत बधाई।
बहुत ही खूबसूरत
बहुत बहुत धन्यवाद शिशिर जी। आपको और आपके समस्त परिवार को शुभ दीपावली की बहुत शुभकामनाऐं और हार्दिक बधाई।
सर्वप्रथम आपको सपरिवार दीपावली की शुभ कामनाएँ .आपकी रचना बहुत सुन्दर है .
बहुत बहुत धन्यवाद मीना जी आपका।
Bahut bahut sundar rachna manjusha ji..??
Happy deepawali
Thanks Swati .
बहुत खुबसूरत भाव सम्प्रेषण ….।।
बहुत बहुत धन्यवाद डी. के. जी आपकी सूंदर प्रतिक्रिया के लिए।