दौड़ kiran kapur gulati28/10/2016 3 Commentsसदियों से चल रहीइक अजीब दौड़ हैछूट जाता है कभी कहीं कुछकभी ख़्वाहिशों के दौर हैंनहीं थमता यह वक़्त कभीसाँस हर पल चलती हैख़ुशनुमा होते हैं मंज़र कभीतो सफ़र सुहाना लगता हैकभी ढूँढते हैं बीते लम्हे तोज़िंदगी कोई फसाना लगता हैहै यह सफ़र कुछ ऐसानहीं कुछ बेगना लगता हैहै इक ज़ुनून यह दौड़ शायदहर शख़्स दीवाना लगता हैहोता शमॉ पे क़ुर्बानइंसान परवाना लगता हैचल रही है दौड़ सदियों सेहै वजह क्या हम जानते नहींरचा किसने चक्रव्यूह है कैसाक़ुदरत को हम पहचानते नहींखिलते हैं गुल रोज़ कैसेभरता है उनमें ख़ुशबू कौनहर सू बिखरे हैं रंग हज़ारबनाने वाले को हम जानते नहींबनती है रोज़ तस्वीर नयीऔर बिगड़ जाती हैफिर चलता है जादू कोईख़ुद ही सँवर जाती हैहोती है सुबह रोज़जो शाम में ढल जाती हैहै करिश्मा जाने यह कैसादौड्ड ज़िंदगी में ढल जाती है
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वास्तविकता से रूबरू कराती खूबसूरत रचना …………..अति सुंदर ……………………..दीवापली की हार्दिक शुभकामनाये !!
निवंतियाँ जी धन्यवाद ,आपको भी दीपावली की शुभ कमाएँ
Nivatiyan JI aapko bhi Dipawali ki Shubh kamnayen
Kavita achhi lagi iske liye bahut 2dhanyawad
Very very nice poem????
Swati JI kavita pasand aayee Jaan kar aachha laga , dhanyawad