हो गये समझदार, हम भी दाँव आजमाने में लगे हैं।समझता कौन है यहाँ, हम भी समझाने में लगे हैं॥दिल से नहीं दिमाग से, अब तो बनते रिस्ते नाते हैंस्वार्थ से सम्मान और, मतलब से मनाने में लगे हैं॥हमने देखा है छवि, कई कार्यालयों का इस कदर।जहाँ काम होता नहीं, बस सभी कमाने में लगे हैं॥कौन जाता है अब अदालत मामला सुलझाने के लियेवकिल खुद अपने मुव्क्किल को उलझाने में लगे हैं॥रंजीत कुमार झा
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very true words sir……………………….
धन्यवाद मनी जी…अपना स्नेह बनाये रखें॥
हार्दिक धन्यवाद…
बहुत सुंदर…………………..
आशेष धन्यवाद विजय जी……
बेहद उम्दा…………
धन्यवाद सर जी…
बहुत ही बढ़िया………… सत्य कथन……
सादर आभार आपका…
LOVELY ………………………..!!