सदियों से चल रहीइक अजीब दौड़ हैछूट जाता है कभी कहीं कुछकभी ख़्वाहिशों के दौर हैंनहीं थमता यह वक़्त कभीसाँस हर पल चलती हैख़ुशनुमा होते हैं मंज़र कभीतो सफ़र सुहाना लगता हैकभी ढूँढते हैं बीते लम्हे तोज़िंदगी कोई फसाना लगता हैहै यह सफ़र कुछ ऐसानहीं कुछ बेगना लगता हैइक ज़ुनून है यह दौड़ शायदहर शख़्स दीवाना लगता हैहोता शमा पे क़ुर्बानइंसान परवाना लगता हैचल रही है सदियों से दौड़वजह है क्या हम जानते नहींहै चक्रवियुह रचा यह कैसाक़ुदरत को पहचानते नहींखिलते हैं गुल रोज़ कैसेभरता है उनमें ख़ुशबू कौनचहूँ ओर बिखरे हैं रंग हज़ारफिर भी उसे हम मानते नहींबनती है रोज़ इक तस्वीर नईऔर बिगड़ जाती हैफिर चलता है जादू कोईख़ुद ही सँवर जाती हैहोती है सुबह रोज़जो शाम में ढल जाती हैकरिश्मा है यह जाने कैसादौड्ड ज़िंदगी में बदल जाती है
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हा हा हा….सब इसी दौड़ के शिकार हैं…कोई नहीं बच पाता….बेहद खूबसूरती से आपने भी दौड़ का जाल बुना है फस गए हम…
बब्बू जी बहुत २ धन्यवाद ,आपके हँसने से लगता है आप काफ़ी ख़ुश मिज़ाज है ।भगवान करे आप सदा इसी तरह हँसते मुस्कुराते रहें
very true words……………………….
मनी जी सराहना के लिए आपका बहुत२धन्यवाद
Bahut accha……
विवेक जी कविता आपको अछी लगी इसके लिए धन्यवाद
बहुत ही बढ़िया रचना………………. किरन जी ।
काजल जी सराहना के लिए आभारी हूँ ,धन्यवाद
बहुत सुंदर रचना………………………………
विजय जी कविता पसंद आयी इसके लिए आभारी हूँ ,dhnyawad
लाजवाब …………………….. किरण जी !!
सर्जीत जी ,सराहना के लिए बहुत २धन्यवाद
बहुत उम्दा ……………….!!
निव्वांतियाँ जी ,सराहना के लिए बहुत। २धन्यवाद