जब से तुमने मुख मोड़ लिया है,नेह से बंधन तोड़ लिया है |बिखर गए हैं मोती माला के,शब्द खो गए मेरी कविता के |रसिक ह्रदय का स्वाद छिन गया,छंद का भाव विभाव छिन गया |हास रुलाता है मुझको, करुणा पर हँसना आता है |श्रंगार का मुझको बोध ना रहा, रौद्र, वीर न भाता है |अलंकार माया से लगते, लय, तुक का भी मोह नहीं |तपती धूप में पैर हैं जलते, शीतलता रूपी छोह नहीं |बैठा कागज पर दर्द उकेरने, कलम दुहाई देती है |दिल के कवि का क़त्ल हो चूका, बात सुनाई देती है |
-विवेक गुप्ता
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Lovely ………………..
बहुत बहुत आभार शिशिर ‘मधुकर’ जी
बहुत सुन्दर……………..
धन्यवाद श्रीमान !!
बहुत खुबसूरत रचना…………. विवेक जी ।
बहुत बहुत आभार काजल जी !!
उम्दा सृजन ………….!!
दिली शुक्रिया महोदय !
Good Vivek. Keep it up…
खूब आभार चन्द्र जी !!
Very NIce ………………………………… Vivek Jee.
धन्यवाद ! आभार |
बहुत सुन्दर विवेक जी
धन्यवाद ! आभार |
सुंदर रचना विवेक जी
धन्यवाद ! आभार |
Bahut sundar rachna??
धन्यवाद ! आभार |
Very nice Vivek Ji
धन्यवाद ! आभार |
बहुत सुंदर…………………..
धन्यवाद ! आभार |